"माँ"
मेरा प्यारा सा बच्चा गोद में भर लेती है बच्चे को चेहरे पर नज़र न लगे माथे पर काजल का टीका लगाती है कोई बुरी आत्मा न छू सके बांहों में ताबीज बाँध देती है
बच्चा स्कूल जाने लगा है सुबह से ही माँ जुट जाती है चौके -बर्तन में कहीं बेटा भूखा न चला जाए
लड़कर आता है पडोसियों के बच्चों से माँ के अंचल में छुप जाता है अब उसे कुछ नही हो सकता
बच्चा बड़ा होता जाता है माँ मन्नते मांगती है देवी- देवताओं से बेटा के सुनहरे भविष्य की खातिर बेटा कामयाबी पता है माँ भर लेती है उसे बांहों में अब बेटा नज़रों से दूर हो जाएगा
फिर एक दिन आता है शहनाइयान गूंज उठती हैं माँ के कदम आज जमीं पर नही कभी इधर दौड़ती है कभी उधर बहू के क़दमों का इंतजार है उसे आशीर्वाद देती है दोनों को एक नयी जिन्दगी की शुरुआत के लिए
माँ सिखाती है बहू को परिवार की परम्पराएँ और संस्कार बेटे का हाथ बहू के हाथों में रख बोलती है बहुत नाज़ से पला है इसे अब तुम्हें ही देखना है
माँ की खुशी भरी आँखों से आंसू की एक गरम बूँद गिरती है बहू की हथेली पर । |